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Showing posts from January 1, 2018
शून्य से अन्नत तक !   न चाह है …. किसी खुशी की , न चाह है … किसी मंज़िल की , बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! माना मैं एक ‘शून्य’ हूँ , शून्य से सब होता है शुरू ! गूंगा आईना है... मुझसे कहता , जो न किया अब तक ... वो करूँ । मुश्किले लाख मुझसे गले मिले , आँसू पाँव मे गिर कर चुभने लगे , आँधियाँ रोक मुझे ... मेरी मंज़िल पूछने लगे , या ....रास्ते हो पत्थर के बने ! फिर भी ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! सोचता हूँ.... मंज़िल की परिभासा बदलूँ , जो एक नही .... अपार है ! जिस मंज़िल को तू ... हर पल सोच रहा है , वही तेरा संसार है । जानता हूँ .... अनंत सफर की ... अनंत रुकावटे रास्ता देख रही होंगी मेरा ! जो मेरा सूरज.... कल डूब गया था , वो एक दिन ... हौसलों की रोशनी मे देखेगा ... नया सवेरा । इसलिए  ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !