शायद ... फिर आंखे बरस रही ... आबशार होकर , यादों का कोई बादल ... फट गया है शायद ! न जाने क्यूँ पूरा शहर ... सूना लग रहा ? मेरा दिलबर शहर .... छोड़ गया है शायद ! अब दिल किसी से ... जुड़ता नही , अंदर से मुझे वो ..... तोड़ गया है शायद ! यादों का बादल नही ... फिर भी नम है आंखे , फिर से कोई जिक्र तेरा ... छेड़ गया है शायद ! अब कोई जश्न.... रास आता नही , मेरे अंदर कोई …. मर गया है शायद ! बात है छोटी सी ... मगर लिख लो ‘ विशाल ’ तू फिर से ‘ दर्द ’ यहाँ ... लिख गया है शायद ! - आबशार : झरना © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
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Showing posts from December, 2017
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यूं ही खता कोई करता नही ! खाता है हर कोई धोखा ... इस प्यार के खेल मे मैं इस खेल का .... पहला खिलाड़ी नही ! बरसती हैं आंखे अक्सर .... हालातों की धूप में सिर्फ नज़रों की इसमे ... खता नही ! कहने समझने का .... अंतर जरूर होगा बाते यूं ही हवाओ मे ... दिशा बदलती नही ! लब सील गए होंगे तेरे ... खामोशी के धागों से वरना यूं ही कोई .... चुप रहता नही ! खेलती है तेरी यादें मुझसे ... ख्वाबों के बागों में जब तक सुबह का माली .... दस्तक देता नही ! © Vishal Maurya नोट - आपको रचना कैसी लगी हमे अवश्य बताए !
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कहानी ....छोटी बच्ची निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन ...नई दिल्ली हाँ.. यही से मैं कुछ नाश्ता करने के बाद , मेट्रो से अपने दफ्तर जाता था । मैं बस से उतरा ... और चल पड़ा मेट्रो गेट की ओर ...जहां वो छोला- कुल्चा वाला अपना ठेला लगाता था । तभी मैंने अपनी रफ्तार मे कुछ कमी महसूस की , मानो कोई मुझे अपनी ओर खिच रहा हो ... पीछे पलटा तो देखा एक छोटी बच्ची मेरे जीन्स के साथ लगी पड़ी थी । उसने एक छोटी सी लाल रंग की फटी पुरानी फ़्राक पहन रखी थी ... जो उसके हालात अपने आप बयां कर रहे थे। “साहेब ! कुछ पैसा दई दो ... दो दीना से कुछ नही खाया ... दई दो न ! ... आपके बच्चे खुश रहे ... पढे लिखे आगे बढ़े “ छोटी बच्ची ने मुझसे कहा । मैं ये सुन कर चौंक गया और सोचने लगा.... काहे के बच्चे ! ... मेरी तो शादी भी नही हुई ... फिर उनके पढ़ने लिखने और खुश रहने का तो सवाल ही नही उठता ... ये शब्द किसने.... इसकी इस छोटी सी जुबान पर डाले होंगे... जबकि मासूमियत आज भी इसके चेहरे पर अपना डेरा जमाये हुये है ... इसे पैसा दे देता हूँ ... नही ... ऐसा नही कर सकता ! कहीं ऐसा करके मैं इसके भीख मांगने की प्रवित्त
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ऐसा कभी वक़्त नही आया ! जिंदगी को वो पढ़ता रहा... जिंदगी भर , पर कभी चेहरों को... पढ़ना नही आया ! सीख ली जिसने... जम के दुनियादारी , उसे रिश्तों की गहराईयों मे कभी... डुबना नही आया ! खरीद ली जो एक किताब समझदारी की.... उस नुक्कड़ की दुकान से , पढ़ सके कभी शिद्दत से ...ऐसा कभी वक़्त नही आया ! जाता रहा वो रोज ... मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा , कहाँ रहता है खुदा ... उसे कभी समझ नही आया ! जरूर ढूंढ लेता वो खुशी ....उस गम के शहर मे , जो शहर मे ही रह गया ...कभी घर नही आया ! जीत लेता वो...... हर एक जंग जिंदगी की , शायद खुद पे लगी जंग को ...कभी धोना नही आया ! © Vishal Maurya नोट - रचना को बेहतर बनाने की दिशा में अपना मत दे !
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A Girl’s Silent Cry You know… The saddest part in a girl’s Life , More painful than a wound by a Knife . Her silent cry in her Makeup , A heart already broken that she can’t make up ! A cry …. That is sometimes difficult to notify , Although Her tears are transparent ! trying to hide from her parent , but u can’t see her sadness . Perhaps…. you can call its my madness , to say…. How much blind can a man be …. With perfect two eyes ? © Vishal Maurya Note-Give your valuable views ....
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भूल गए ! जोड़ते - घटाते थे लोग ..मेरे साथ ..बीते हर लम्हे को , आख़िरी वक़्त आया ..वे हिसाब करना भूल गए ! जन्नत के श्यामपट पर ..पूरा मजहब पढ़ा दिया , बस ..इंसानियत पढाना भूल गए ! आधी जिंदगी खर्च कर दी ..चंद नोट खरीदने में , अपने 'छूटते रिश्तों' के छुट्टे ...वापस लेना भूल गए ! उन्हें याद करने में ..इतना मशगूल हैं आजकल , दुनिया को छोड़ो ..हम खुद को भूल गए ! आहिस्ता - आहिस्ता दरमियाँ ..फासला बढ़ता रहा , शायद ..तुम सुनना और हम कहना भूल गए ! लम्हा - लम्हा कर जमा किया था ..वक़्त को उसके पास , जब दुनिया से चले ..वो वापस करना भूल गए ! मंज़िल हमसे एक इंच.. दूर ही रही , शायद हम गिरते -गिरते ...संभलना भूल गए ! गांव ..शहर से पल -पल ....रूठता रहा , जब से मकान ले लिया ..घर भूल गए ! हैरां न होना ..जो आंसू गिरे आसमान से , कही न कही हम ...इंसाफ करना भूल गए ! तू आज भी अपनी बात ..न समझा पायेगा 'विशाल ' जो तू कुछ अल्फ़ाज़ ..वो जज़्बात भूल गए ! © Vishal Maurya नोट -रचना को बेहतर बनाने की दिशा