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बेरोजगार इश्क़

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तेरा रूठना भी सितम है हम दोनों पर ही , एक मैं हूँ ,एक है आईना दोनों ही बेरोजगार हुए बैठें हैं । फुरसत के कुछ पल तो थे तेरी नौकरी में जानम , तुम क्या गयी , सारे रविवार गम में सोमवार हुए बैठे हैं । दिलो दिमाग इश्क में थे नादां फिर टूटा दिल , जाने दो, बोला दिमाग लगता है दोनों समझदार हुए बैठे हैं । कहते हैं सब भुला दिया जाता है एक दिन , अरसे हुए दिल टूटे ,पर आज भी लोग अख़बार हुए बैठे हैं । जब से तुम गयी कोई आवाज रास आती नही, बस मेरे कान तेरी आहट की धुन को तलबगार हुए बैठे हैं । © Vishal Maurya ( Vishaloktiya ) नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s