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Showing posts from December 21, 2017
शायद ... फिर आंखे बरस रही ... आबशार होकर , यादों का कोई बादल ... फट गया है शायद ! न जाने क्यूँ पूरा शहर ... सूना लग रहा ? मेरा दिलबर शहर .... छोड़ गया है शायद ! अब दिल किसी से ... जुड़ता नही , अंदर से मुझे वो ..... तोड़ गया है शायद ! यादों का बादल नही ... फिर भी नम है आंखे , फिर से कोई जिक्र तेरा ... छेड़ गया है शायद ! अब कोई जश्न.... रास आता नही , मेरे अंदर कोई …. मर गया है शायद ! बात है छोटी सी ... मगर लिख लो ‘ विशाल ’ तू फिर से ‘ दर्द ’ यहाँ ... लिख गया है शायद ! - आबशार : झरना  © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !