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Showing posts from December 14, 2017
भूल गए ! जोड़ते - घटाते थे लोग ..मेरे साथ ..बीते हर लम्हे को , आख़िरी वक़्त आया ..वे हिसाब करना भूल गए ! जन्नत के श्यामपट पर ..पूरा मजहब पढ़ा दिया , बस ..इंसानियत पढाना भूल गए ! आधी जिंदगी खर्च कर दी ..चंद नोट खरीदने में , अपने 'छूटते रिश्तों' के छुट्टे ...वापस लेना भूल गए ! उन्हें याद करने में ..इतना मशगूल हैं आजकल , दुनिया को छोड़ो ..हम खुद को भूल गए ! आहिस्ता - आहिस्ता दरमियाँ ..फासला बढ़ता रहा , शायद ..तुम सुनना और हम कहना भूल गए ! लम्हा - लम्हा कर जमा किया था ..वक़्त को उसके पास , जब दुनिया से चले ..वो वापस करना भूल गए ! मंज़िल हमसे एक इंच.. दूर ही रही , शायद हम गिरते -गिरते ...संभलना भूल गए ! गांव ..शहर से पल -पल ....रूठता रहा , जब से मकान ले लिया ..घर भूल गए ! हैरां न होना ..जो आंसू गिरे आसमान से , कही न कही हम ...इंसाफ करना भूल गए ! तू आज भी अपनी बात ..न समझा पायेगा 'विशाल ' जो तू कुछ अल्फ़ाज़ ..वो जज़्बात भूल गए ! © Vishal Maurya नोट -रचना को बेहतर बनाने की दिशा