भूल गए !
जोड़ते - घटाते थे लोग ..मेरे साथ ..बीते हर लम्हे को ,
आख़िरी वक़्त आया ..वे हिसाब करना भूल गए !
जन्नत के श्यामपट पर ..पूरा मजहब पढ़ा दिया ,
बस ..इंसानियत पढाना भूल गए !
आधी जिंदगी खर्च कर दी ..चंद नोट खरीदने में ,
अपने 'छूटते रिश्तों' के छुट्टे ...वापस लेना भूल गए !
उन्हें याद करने में ..इतना मशगूल हैं आजकल ,
दुनिया को छोड़ो ..हम खुद को भूल गए !
आहिस्ता - आहिस्ता दरमियाँ ..फासला बढ़ता रहा ,
शायद ..तुम सुनना और हम कहना भूल गए !
लम्हा - लम्हा कर जमा किया था ..वक़्त को उसके पास ,
जब दुनिया से चले ..वो वापस करना भूल गए !
मंज़िल हमसे एक इंच.. दूर ही रही ,
शायद हम गिरते -गिरते ...संभलना भूल गए !
गांव ..शहर से पल -पल ....रूठता रहा ,
जब से मकान ले लिया ..घर भूल गए !
हैरां न होना ..जो आंसू गिरे आसमान से ,
कही न कही हम ...इंसाफ करना भूल गए !
तू आज भी अपनी बात ..न समझा पायेगा 'विशाल '
जो तू कुछ अल्फ़ाज़ ..वो जज़्बात भूल गए !
© Vishal Maurya
नोट -रचना को बेहतर बनाने की दिशा मे अपनी प्रतिकृया अवश्य दें ।
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