इंसानियत का कोई रिवाज नही ! फूंक डालो उस मजहब को वही पर जिसमें इंसानियत का कोई रिवाज नही ! जबान खींच ली है हुक़्ममरानो ने हमारी इंसाफ की आती कोई आवाज नही ! अब कितनी फ़ूट डालोगे हमारी रगों में आवाम की सोच कोई बेपरवाज नही ! जफ़ा का वो दौर गूंज रहा फिज़ाओं में वफ़ा के गीत में थिरकती कोई साज नही ! जमहूरियत का ताज जिसे तुमने पहना दिया उसके मुस्तक़बिल में तुम्हारा कोई आज नही ! अब भी मौका है इस मुल्क को बचा लो यारों वरना लोग कहेंगे इस मुल्क की तकदीर में कोई जाबांज़ नही ! जफा - अन्याय जमहूरियत - प्रजातन्त्र मुस्तक़बिल- भविस्य © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
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