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Showing posts from 2018
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चाहे तो दामन में आसमान रखो , पर इतना न तुम गुमान रखो ! बड़ा जुल्म ढाती है ये दुनिया , हिफाजत को मौत का सामान रखो ! फजीहतों का कोई वक़्त नही होता , हाथ में तैयार हमेशा कमान रखो ! जल जाते हैं ईमान इसकी आंच में , सियासतों से दूर मकान रखो ! कब तलक भरोसा रहे जनता को , सरकारों तुम भी कभी जबान रखो ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
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दिल है वीरान उस दिन से , चुरा ले गयी वो धड़कने जिस दिन से ! मेरे हाथ में तेरा हाथ होगा , लगते हैं ये ख्वाब मुझे नामुमकिन से ! तन्हाई की मूंगफलियां तोड़ेंगे मिलने पर , जो बचा रखी हैं मैंने कई दिन से ! दिखती नही गाँठ रिश्तों के डोर में , जब धागे होते हैं बड़े महीन से ! मिलता है वो मुझसे ऐसे आजकल , जैसे मिलता हो कोई मशीन से ! छू रहे जो आसमां को आज परिंदे , यकीनन उठे थे कल जमीन से ! अब सफेदो-स्याह लगते हैं उसके बिन , संग देखे थे जो ख्वाब रंगीन से ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
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अब नींद नही आती उसके बिना , रात चाहे लाख सुलाए मुझे ! वो गयी है तो आ भी जाएगी , ये बात कोई समझाये मुझे ! कुछ मुक्कमल काम भी कर लूं , कोई उसके ख्वाब से जगाये मुझे ! उसके बिना जान नही आती , साँसे चाहे लाख हिलाये मुझे ! वो उन लोगों में है शुमार , जो शिद्दत से समझ पाये मुझे ! अल्फ़ाज़ मेरे बस हैं इसी इंतज़ार में , कभी वो आये गाये मुझे ! उसके चेहरे से नज़र ही नही हटती मानो उसके चेहरे में कोई डुबाये मुझे ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s

जला हूँ मैं

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तुम जो पूछते हो .. के ये रौशनी कहाँ से आई मुझमे , वक़्त की परतों में ….. शिद्द्त से जला हूँ मैं ! यूँ ही नही … बड़े हो गए हौसले मेरे , मयस्सर न रहा घर तो ... सडक़ों पर पला हूँ मैं ! मुमकिन है … तुम वक़्त को भी टाल जाओ , जो टाल न सकोगे... वो बला हूँ मैं ! खामोश हो गए मुझमे … शोर भी समा के , अब कुछ नही... बस एक ख़ला हूँ मैं ! हैरां नही मैं ..जो तुम समझ न पाए विशाल-ऐ-हुनर , जो एक बार में समझ न आये ...वो कला हूँ मैं ! खला - वीरान  © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s

गजल - फनाह ...

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यार ...अब तू न पूछ...की मैं आजकल... क्या कर रहा हूँ ? बस ...खुद ही को......खुद ही में....... फनाह कर रहा हूँ । नफरत-ऐ-चाकू से... कई दफा तोड़ा था.....उसने दिल मेरा , बस ... उनही टुकड़ों को जमा कर रहा हूँ । अब ‘ मौत ’ का खौफ.... न दिखा तू मुझे , मुर्दा हूँ ....मुर्दे की धड़कने... जवाँ कर रहा हूँ । घर मेरा जला ....तू क्यूँ जला चूल्हा तेरा ? बस इसी बात का आजकल... पता कर रहा हूँ । बरसते ‘ झूठे ’ इलज़ामो की अदालत मे....रोज नहाता हूँ मैं साफ हूँ ... फिर भी खुद को..... सफा कर रहा हूँ । मुफ़लिसी का आलम... कुछ यूं चल रहा...ऐ दोस्त ! जेब कट गयी है नोटों की ...सिक्कों को जमा कर रहा हूँ । ऐ वक़्त ...अब क्या बाकी है ... जो लेना है ले ले , मैं जुगनुओं से सूरज..... पैदा कर रहा हूँ । © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
गजल : फकीर चाहिए .... एक पल मे जो मेरे ... मुल्क की बाज़ी पलट दे , सियासत में  ... वो वज़ीर चाहिए ! रहनुमा ही भटकाते हैं ..... अक्सर खुदा , जो सही राह बता दे ..... वो फकीर चाहिए ! अब पत्थर नहीं ..... अब दंगे नहीं , खूबसूरती जिसका गहना ... वो कश्मीर चाहिए ! देखो .... बड़ी बेरंग सी हो गयी है मेरे मुल्क की सूरत , जो थोड़ा सा रंग भर दे .... वो अबीर चाहिए ! जो किस्मत बदल दे .... मेरे मुल्क की खुदा , हुक्ममरानों के माथों पर .... वो लकीर चाहिए ! बेइमानो ने जगह ले ली है .... ईमानदारों की , जो उनको औक़ात दिखा दे ..ईमान की पुरानी ... वो तस्वीर चाहिए ! देखो ... कुछ भटक से गए है ... आज हम , जो सही पता बता दे ... वो जमीर चाहिए ! अब चुप रहने से ....बात नहीं बनेगी यारों , अचूक निशाना हो जिसका .... जुबां में ... वो तीर चाहिए ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
इंसानियत का कोई रिवाज नही ! फूंक डालो उस मजहब को वही पर  जिसमें इंसानियत का कोई रिवाज नही ! जबान खींच ली है हुक़्ममरानो ने हमारी  इंसाफ की आती कोई आवाज नही ! अब कितनी फ़ूट डालोगे हमारी रगों में  आवाम की सोच कोई बेपरवाज नही ! जफ़ा का वो दौर गूंज रहा फिज़ाओं में  वफ़ा के गीत में थिरकती कोई साज नही ! जमहूरियत का ताज जिसे तुमने पहना दिया  उसके मुस्तक़बिल में तुम्हारा कोई आज नही ! अब भी मौका है इस मुल्क को बचा लो यारों वरना लोग कहेंगे इस मुल्क की तकदीर में कोई जाबांज़ नही ! जफा - अन्याय         जमहूरियत - प्रजातन्त्र       मुस्तक़बिल- भविस्य  © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
कुछ ऐसी  है वो .....! जब भी ढूंढा करती हैं …… मेरी आंखे उसको नजरों के मिलते ही .....नजरे चुरा लेती हैं वो ! एक सफर जो शुरू होता है ....नज़रों से दिल तक , दिल तक पहुँचते -2   .... एक मोड़ दे देती है वो  ! दिल पर जब भी दी दस्तक ... वहाँ दरवाजा बंद ही मिला , मेरे मुह मोड़ते ही ...  खिड़की खोल देती है वो ! जब भी करनी चाही गुफ़्तुगु ...  उस बारिश के मौसम मे , निगाहों के दरमियाँ होते ही .... एक टूटा ख्वाब बना देती वो ! अक्सर दूर चला आता हूँ मैं .... उसके एक झलक के दीदार को , निराश हो जब भी पलटा... पीछे खड़ी मिलती है वो ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
शून्य से अन्नत तक !   न चाह है …. किसी खुशी की , न चाह है … किसी मंज़िल की , बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! माना मैं एक ‘शून्य’ हूँ , शून्य से सब होता है शुरू ! गूंगा आईना है... मुझसे कहता , जो न किया अब तक ... वो करूँ । मुश्किले लाख मुझसे गले मिले , आँसू पाँव मे गिर कर चुभने लगे , आँधियाँ रोक मुझे ... मेरी मंज़िल पूछने लगे , या ....रास्ते हो पत्थर के बने ! फिर भी ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! सोचता हूँ.... मंज़िल की परिभासा बदलूँ , जो एक नही .... अपार है ! जिस मंज़िल को तू ... हर पल सोच रहा है , वही तेरा संसार है । जानता हूँ .... अनंत सफर की ... अनंत रुकावटे रास्ता देख रही होंगी मेरा ! जो मेरा सूरज.... कल डूब गया था , वो एक दिन ... हौसलों की रोशनी मे देखेगा ... नया सवेरा । इसलिए  ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !