दिल है वीरान उस दिन से ,
चुरा ले गयी वो धड़कने जिस दिन से !
मेरे हाथ में तेरा हाथ होगा ,
लगते हैं ये ख्वाब मुझे नामुमकिन से !
तन्हाई की मूंगफलियां तोड़ेंगे मिलने पर ,
जो बचा रखी
हैं मैंने कई दिन से !
दिखती नही
गाँठ रिश्तों के डोर में ,
जब धागे होते
हैं बड़े महीन से !
मिलता है वो
मुझसे ऐसे आजकल ,
जैसे मिलता हो
कोई मशीन से !
छू रहे जो
आसमां को आज परिंदे ,
यकीनन उठे थे
कल जमीन से !
अब
सफेदो-स्याह लगते हैं उसके बिन ,
संग देखे थे
जो ख्वाब रंगीन से !
© Vishal Maurya ' Vishaloktiya '
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