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जला हूँ मैं

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तुम जो पूछते हो .. के ये रौशनी कहाँ से आई मुझमे , वक़्त की परतों में ….. शिद्द्त से जला हूँ मैं ! यूँ ही नही … बड़े हो गए हौसले मेरे , मयस्सर न रहा घर तो ... सडक़ों पर पला हूँ मैं ! मुमकिन है … तुम वक़्त को भी टाल जाओ , जो टाल न सकोगे... वो बला हूँ मैं ! खामोश हो गए मुझमे … शोर भी समा के , अब कुछ नही... बस एक ख़ला हूँ मैं ! हैरां नही मैं ..जो तुम समझ न पाए विशाल-ऐ-हुनर , जो एक बार में समझ न आये ...वो कला हूँ मैं ! खला - वीरान  © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s