जला हूँ मैं
तुम जो पूछते हो ..के ये रौशनी कहाँ से आई मुझमे,
वक़्त की परतों में….. शिद्द्त से जला हूँ मैं !
यूँ ही नही… बड़े हो गए हौसले मेरे ,
मयस्सर न रहा घर तो...सडक़ों पर पला हूँ मैं !
मुमकिन
है… तुम वक़्त को भी टाल जाओ ,
जो टाल
न सकोगे... वो बला हूँ मैं !
खामोश
हो गए मुझमे… शोर भी समा के ,
अब कुछ
नही... बस एक ख़ला हूँ मैं !
हैरां
नही मैं ..जो तुम समझ न पाए विशाल-ऐ-हुनर ,
जो एक बार में
समझ न आये ...वो कला हूँ मैं !
खला - वीरान
© Vishal Maurya ' Vishaloktiya '
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