Posts

बेरोजगार इश्क़

Image
तेरा रूठना भी सितम है हम दोनों पर ही , एक मैं हूँ ,एक है आईना दोनों ही बेरोजगार हुए बैठें हैं । फुरसत के कुछ पल तो थे तेरी नौकरी में जानम , तुम क्या गयी , सारे रविवार गम में सोमवार हुए बैठे हैं । दिलो दिमाग इश्क में थे नादां फिर टूटा दिल , जाने दो, बोला दिमाग लगता है दोनों समझदार हुए बैठे हैं । कहते हैं सब भुला दिया जाता है एक दिन , अरसे हुए दिल टूटे ,पर आज भी लोग अख़बार हुए बैठे हैं । जब से तुम गयी कोई आवाज रास आती नही, बस मेरे कान तेरी आहट की धुन को तलबगार हुए बैठे हैं । © Vishal Maurya ( Vishaloktiya ) नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s

ग़ज़ल - नकाब

Image
कैसे पहचाने हर एक शख्स को , यहां नक़ाब कभी चेहरे से नही मिलता ! शायद इसलिए भी हम शिकस्त खाये हैं हमारे सफर का मंज़िल से रास्ता नही मिलता ! खलती है बस यही बात उसके बारे में , मिलता है वो सबसे पर हमसे नही मिलता ! मिल ही जाता है मरने पर काफिला भी, पर जीतेजी यहां कोई हमसफर नही मिलता ! हम क्या लिखेंगे जिंदगी पर ग़ज़ल , हमारा जिंदगी से कभी काफ़िया नही मिलता ! मैं पागल पत्थरों के बीच बैठे सोच रहा क्यों किसी की आँखों में पानी नही मिलता ! हमेशा दूर रहे हम तुम पास हो के भी , जैसे बहती दरिया में कभी रेत नही मिलता ! मरते दम तक सवाल रहेगा ख़ुदा तुझसे , जो अंदर है मेरे तो बाहर क्यों नही मिलता ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
Image
चाहे तो दामन में आसमान रखो , पर इतना न तुम गुमान रखो ! बड़ा जुल्म ढाती है ये दुनिया , हिफाजत को मौत का सामान रखो ! फजीहतों का कोई वक़्त नही होता , हाथ में तैयार हमेशा कमान रखो ! जल जाते हैं ईमान इसकी आंच में , सियासतों से दूर मकान रखो ! कब तलक भरोसा रहे जनता को , सरकारों तुम भी कभी जबान रखो ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
Image
दिल है वीरान उस दिन से , चुरा ले गयी वो धड़कने जिस दिन से ! मेरे हाथ में तेरा हाथ होगा , लगते हैं ये ख्वाब मुझे नामुमकिन से ! तन्हाई की मूंगफलियां तोड़ेंगे मिलने पर , जो बचा रखी हैं मैंने कई दिन से ! दिखती नही गाँठ रिश्तों के डोर में , जब धागे होते हैं बड़े महीन से ! मिलता है वो मुझसे ऐसे आजकल , जैसे मिलता हो कोई मशीन से ! छू रहे जो आसमां को आज परिंदे , यकीनन उठे थे कल जमीन से ! अब सफेदो-स्याह लगते हैं उसके बिन , संग देखे थे जो ख्वाब रंगीन से ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
Image
अब नींद नही आती उसके बिना , रात चाहे लाख सुलाए मुझे ! वो गयी है तो आ भी जाएगी , ये बात कोई समझाये मुझे ! कुछ मुक्कमल काम भी कर लूं , कोई उसके ख्वाब से जगाये मुझे ! उसके बिना जान नही आती , साँसे चाहे लाख हिलाये मुझे ! वो उन लोगों में है शुमार , जो शिद्दत से समझ पाये मुझे ! अल्फ़ाज़ मेरे बस हैं इसी इंतज़ार में , कभी वो आये गाये मुझे ! उसके चेहरे से नज़र ही नही हटती मानो उसके चेहरे में कोई डुबाये मुझे ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s

जला हूँ मैं

Image
तुम जो पूछते हो .. के ये रौशनी कहाँ से आई मुझमे , वक़्त की परतों में ….. शिद्द्त से जला हूँ मैं ! यूँ ही नही … बड़े हो गए हौसले मेरे , मयस्सर न रहा घर तो ... सडक़ों पर पला हूँ मैं ! मुमकिन है … तुम वक़्त को भी टाल जाओ , जो टाल न सकोगे... वो बला हूँ मैं ! खामोश हो गए मुझमे … शोर भी समा के , अब कुछ नही... बस एक ख़ला हूँ मैं ! हैरां नही मैं ..जो तुम समझ न पाए विशाल-ऐ-हुनर , जो एक बार में समझ न आये ...वो कला हूँ मैं ! खला - वीरान  © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s

गजल - फनाह ...

Image
यार ...अब तू न पूछ...की मैं आजकल... क्या कर रहा हूँ ? बस ...खुद ही को......खुद ही में....... फनाह कर रहा हूँ । नफरत-ऐ-चाकू से... कई दफा तोड़ा था.....उसने दिल मेरा , बस ... उनही टुकड़ों को जमा कर रहा हूँ । अब ‘ मौत ’ का खौफ.... न दिखा तू मुझे , मुर्दा हूँ ....मुर्दे की धड़कने... जवाँ कर रहा हूँ । घर मेरा जला ....तू क्यूँ जला चूल्हा तेरा ? बस इसी बात का आजकल... पता कर रहा हूँ । बरसते ‘ झूठे ’ इलज़ामो की अदालत मे....रोज नहाता हूँ मैं साफ हूँ ... फिर भी खुद को..... सफा कर रहा हूँ । मुफ़लिसी का आलम... कुछ यूं चल रहा...ऐ दोस्त ! जेब कट गयी है नोटों की ...सिक्कों को जमा कर रहा हूँ । ऐ वक़्त ...अब क्या बाकी है ... जो लेना है ले ले , मैं जुगनुओं से सूरज..... पैदा कर रहा हूँ । © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s