बेरोजगार इश्क़
एक मैं हूँ ,एक है आईना दोनों ही बेरोजगार हुए बैठें हैं ।
फुरसत के कुछ पल तो थे तेरी नौकरी में जानम ,
तुम क्या गयी , सारे रविवार गम में सोमवार हुए बैठे हैं ।
दिलो दिमाग इश्क में थे नादां फिर टूटा दिल ,
जाने दो, बोला दिमाग लगता है दोनों समझदार हुए बैठे हैं ।
कहते हैं सब भुला दिया जाता है एक दिन ,
अरसे हुए दिल टूटे ,पर आज भी लोग अख़बार हुए बैठे हैं ।
जब से तुम गयी कोई आवाज रास आती नही,
बस मेरे कान तेरी आहट की धुन को तलबगार हुए बैठे हैं ।
© Vishal Maurya ( Vishaloktiya )
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