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Showing posts from May 11, 2018
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दिल है वीरान उस दिन से , चुरा ले गयी वो धड़कने जिस दिन से ! मेरे हाथ में तेरा हाथ होगा , लगते हैं ये ख्वाब मुझे नामुमकिन से ! तन्हाई की मूंगफलियां तोड़ेंगे मिलने पर , जो बचा रखी हैं मैंने कई दिन से ! दिखती नही गाँठ रिश्तों के डोर में , जब धागे होते हैं बड़े महीन से ! मिलता है वो मुझसे ऐसे आजकल , जैसे मिलता हो कोई मशीन से ! छू रहे जो आसमां को आज परिंदे , यकीनन उठे थे कल जमीन से ! अब सफेदो-स्याह लगते हैं उसके बिन , संग देखे थे जो ख्वाब रंगीन से ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s