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गजल - फनाह ...

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यार ...अब तू न पूछ...की मैं आजकल... क्या कर रहा हूँ ? बस ...खुद ही को......खुद ही में....... फनाह कर रहा हूँ । नफरत-ऐ-चाकू से... कई दफा तोड़ा था.....उसने दिल मेरा , बस ... उनही टुकड़ों को जमा कर रहा हूँ । अब ‘ मौत ’ का खौफ.... न दिखा तू मुझे , मुर्दा हूँ ....मुर्दे की धड़कने... जवाँ कर रहा हूँ । घर मेरा जला ....तू क्यूँ जला चूल्हा तेरा ? बस इसी बात का आजकल... पता कर रहा हूँ । बरसते ‘ झूठे ’ इलज़ामो की अदालत मे....रोज नहाता हूँ मैं साफ हूँ ... फिर भी खुद को..... सफा कर रहा हूँ । मुफ़लिसी का आलम... कुछ यूं चल रहा...ऐ दोस्त ! जेब कट गयी है नोटों की ...सिक्कों को जमा कर रहा हूँ । ऐ वक़्त ...अब क्या बाकी है ... जो लेना है ले ले , मैं जुगनुओं से सूरज..... पैदा कर रहा हूँ । © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s