कुछ ऐसी है वो .....! जब भी ढूंढा करती हैं …… मेरी आंखे उसको नजरों के मिलते ही .....नजरे चुरा लेती हैं वो ! एक सफर जो शुरू होता है ....नज़रों से दिल तक , दिल तक पहुँचते -2 .... एक मोड़ दे देती है वो ! दिल पर जब भी दी दस्तक ... वहाँ दरवाजा बंद ही मिला , मेरे मुह मोड़ते ही ... खिड़की खोल देती है वो ! जब भी करनी चाही गुफ़्तुगु ... उस बारिश के मौसम मे , निगाहों के दरमियाँ होते ही .... एक टूटा ख्वाब बना देती वो ! अक्सर दूर चला आता हूँ मैं .... उसके एक झलक के दीदार को , निराश हो जब भी पलटा... पीछे खड़ी मिलती है वो ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
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