Posts

Showing posts from January, 2018
गजल : फकीर चाहिए .... एक पल मे जो मेरे ... मुल्क की बाज़ी पलट दे , सियासत में  ... वो वज़ीर चाहिए ! रहनुमा ही भटकाते हैं ..... अक्सर खुदा , जो सही राह बता दे ..... वो फकीर चाहिए ! अब पत्थर नहीं ..... अब दंगे नहीं , खूबसूरती जिसका गहना ... वो कश्मीर चाहिए ! देखो .... बड़ी बेरंग सी हो गयी है मेरे मुल्क की सूरत , जो थोड़ा सा रंग भर दे .... वो अबीर चाहिए ! जो किस्मत बदल दे .... मेरे मुल्क की खुदा , हुक्ममरानों के माथों पर .... वो लकीर चाहिए ! बेइमानो ने जगह ले ली है .... ईमानदारों की , जो उनको औक़ात दिखा दे ..ईमान की पुरानी ... वो तस्वीर चाहिए ! देखो ... कुछ भटक से गए है ... आज हम , जो सही पता बता दे ... वो जमीर चाहिए ! अब चुप रहने से ....बात नहीं बनेगी यारों , अचूक निशाना हो जिसका .... जुबां में ... वो तीर चाहिए ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s
इंसानियत का कोई रिवाज नही ! फूंक डालो उस मजहब को वही पर  जिसमें इंसानियत का कोई रिवाज नही ! जबान खींच ली है हुक़्ममरानो ने हमारी  इंसाफ की आती कोई आवाज नही ! अब कितनी फ़ूट डालोगे हमारी रगों में  आवाम की सोच कोई बेपरवाज नही ! जफ़ा का वो दौर गूंज रहा फिज़ाओं में  वफ़ा के गीत में थिरकती कोई साज नही ! जमहूरियत का ताज जिसे तुमने पहना दिया  उसके मुस्तक़बिल में तुम्हारा कोई आज नही ! अब भी मौका है इस मुल्क को बचा लो यारों वरना लोग कहेंगे इस मुल्क की तकदीर में कोई जाबांज़ नही ! जफा - अन्याय         जमहूरियत - प्रजातन्त्र       मुस्तक़बिल- भविस्य  © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
कुछ ऐसी  है वो .....! जब भी ढूंढा करती हैं …… मेरी आंखे उसको नजरों के मिलते ही .....नजरे चुरा लेती हैं वो ! एक सफर जो शुरू होता है ....नज़रों से दिल तक , दिल तक पहुँचते -2   .... एक मोड़ दे देती है वो  ! दिल पर जब भी दी दस्तक ... वहाँ दरवाजा बंद ही मिला , मेरे मुह मोड़ते ही ...  खिड़की खोल देती है वो ! जब भी करनी चाही गुफ़्तुगु ...  उस बारिश के मौसम मे , निगाहों के दरमियाँ होते ही .... एक टूटा ख्वाब बना देती वो ! अक्सर दूर चला आता हूँ मैं .... उसके एक झलक के दीदार को , निराश हो जब भी पलटा... पीछे खड़ी मिलती है वो ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !
शून्य से अन्नत तक !   न चाह है …. किसी खुशी की , न चाह है … किसी मंज़िल की , बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! माना मैं एक ‘शून्य’ हूँ , शून्य से सब होता है शुरू ! गूंगा आईना है... मुझसे कहता , जो न किया अब तक ... वो करूँ । मुश्किले लाख मुझसे गले मिले , आँसू पाँव मे गिर कर चुभने लगे , आँधियाँ रोक मुझे ... मेरी मंज़िल पूछने लगे , या ....रास्ते हो पत्थर के बने ! फिर भी ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! सोचता हूँ.... मंज़िल की परिभासा बदलूँ , जो एक नही .... अपार है ! जिस मंज़िल को तू ... हर पल सोच रहा है , वही तेरा संसार है । जानता हूँ .... अनंत सफर की ... अनंत रुकावटे रास्ता देख रही होंगी मेरा ! जो मेरा सूरज.... कल डूब गया था , वो एक दिन ... हौसलों की रोशनी मे देखेगा ... नया सवेरा । इसलिए  ... बस चाह है.... एक सफर की ! जो हो ... शून्य से अन्नत तक ! ! © Vishal Maurya नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !