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ग़ज़ल - नकाब

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कैसे पहचाने हर एक शख्स को , यहां नक़ाब कभी चेहरे से नही मिलता ! शायद इसलिए भी हम शिकस्त खाये हैं हमारे सफर का मंज़िल से रास्ता नही मिलता ! खलती है बस यही बात उसके बारे में , मिलता है वो सबसे पर हमसे नही मिलता ! मिल ही जाता है मरने पर काफिला भी, पर जीतेजी यहां कोई हमसफर नही मिलता ! हम क्या लिखेंगे जिंदगी पर ग़ज़ल , हमारा जिंदगी से कभी काफ़िया नही मिलता ! मैं पागल पत्थरों के बीच बैठे सोच रहा क्यों किसी की आँखों में पानी नही मिलता ! हमेशा दूर रहे हम तुम पास हो के भी , जैसे बहती दरिया में कभी रेत नही मिलता ! मरते दम तक सवाल रहेगा ख़ुदा तुझसे , जो अंदर है मेरे तो बाहर क्यों नही मिलता ! © Vishal Maurya ' Vishaloktiya ' नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए और मित्रों के संग साझा करें  !          हमें यूट्यूब चैनल पर भी फॉलो करे ! ( लिंक नीचे )           https://www.youtube.com/watch?v=8hnHTW0S_f8&t=35s