गजल - फनाह ...



यार ...अब तू न पूछ...की मैं आजकल... क्या कर रहा हूँ ?
बस ...खुद ही को......खुद ही में....... फनाह कर रहा हूँ ।

नफरत-ऐ-चाकू से... कई दफा तोड़ा था.....उसने दिल मेरा ,
बस ... उनही टुकड़ों को जमा कर रहा हूँ ।

अब मौत का खौफ.... न दिखा तू मुझे ,
मुर्दा हूँ ....मुर्दे की धड़कने... जवाँ कर रहा हूँ ।

घर मेरा जला ....तू क्यूँ जला चूल्हा तेरा ?
बस इसी बात का आजकल... पता कर रहा हूँ ।

बरसते झूठे इलज़ामो की अदालत मे....रोज नहाता हूँ मैं
साफ हूँ ... फिर भी खुद को..... सफा कर रहा हूँ ।

मुफ़लिसी का आलम... कुछ यूं चल रहा...ऐ दोस्त !
जेब कट गयी है नोटों की ...सिक्कों को जमा कर रहा हूँ ।

ऐ वक़्त ...अब क्या बाकी है ... जो लेना है ले ले ,
मैं जुगनुओं से सूरज..... पैदा कर रहा हूँ ।

© Vishal Maurya ' Vishaloktiya '

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