शायद ...

फिर आंखे बरस रही ... आबशार होकर ,
यादों का कोई बादल ... फट गया है शायद !

न जाने क्यूँ पूरा शहर ... सूना लग रहा ?
मेरा दिलबर शहर .... छोड़ गया है शायद !

अब दिल किसी से ... जुड़ता नही ,
अंदर से मुझे वो ..... तोड़ गया है शायद !

यादों का बादल नही ... फिर भी नम है आंखे ,
फिर से कोई जिक्र तेरा ... छेड़ गया है शायद !

अब कोई जश्न.... रास आता नही ,
मेरे अंदर कोई …. मर गया है शायद !

बात है छोटी सी ... मगर लिख लो विशाल
तू फिर से दर्द यहाँ ... लिख गया है शायद !

-आबशार : झरना 

© Vishal Maurya

नोट - रचना आपको कैसे लगी हमे अवश्य बताए !




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