ऐसा कभी वक़्त नही आया !


जिंदगी को वो पढ़ता रहा... जिंदगी भर ,
पर कभी चेहरों को... पढ़ना नही आया !


सीख ली जिसने... जम के दुनियादारी ,
उसे रिश्तों की गहराईयों मे कभी... डुबना नही आया !


खरीद ली जो एक किताब  समझदारी की.... उस नुक्कड़ की दुकान से ,
पढ़ सके कभी शिद्दत से ...ऐसा कभी वक़्त नही आया !


जाता रहा वो रोज ... मंदिर , मस्जिद , गुरुद्वारा ,
कहाँ रहता है खुदा ... उसे कभी समझ नही आया  !   


जरूर ढूंढ लेता वो खुशी ....उस गम के शहर मे ,
जो शहर मे ही रह गया ...कभी घर नही आया !


जीत लेता वो...... हर एक जंग जिंदगी की ,
शायद खुद पे लगी जंग को ...कभी धोना नही आया !


© Vishal Maurya
नोट - रचना को बेहतर बनाने की दिशा में अपना मत दे !









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