ग़ज़ल - नकाब


कैसे पहचाने हर एक शख्स को ,
यहां नक़ाब कभी चेहरे से नही मिलता !

शायद इसलिए भी हम शिकस्त खाये हैं
हमारे सफर का मंज़िल से रास्ता नही मिलता !

खलती है बस यही बात उसके बारे में ,
मिलता है वो सबसे पर हमसे नही मिलता !

मिल ही जाता है मरने पर काफिला भी,
पर जीतेजी यहां कोई हमसफर नही मिलता !


हम क्या लिखेंगे जिंदगी पर ग़ज़ल ,
हमारा जिंदगी से कभी काफ़िया नही मिलता !

मैं पागल पत्थरों के बीच बैठे सोच रहा
क्यों किसी की आँखों में पानी नही मिलता !


हमेशा दूर रहे हम तुम पास हो के भी ,
जैसे बहती दरिया में कभी रेत नही मिलता !

मरते दम तक सवाल रहेगा ख़ुदा तुझसे ,
जो अंदर है मेरे तो बाहर क्यों नही मिलता !


© Vishal Maurya ' Vishaloktiya '

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