निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन ...नई दिल्ली
हाँ.. यही से मैं कुछ नाश्ता करने के बाद , मेट्रो से अपने दफ्तर जाता था ।
मैं बस से उतरा ... और चल पड़ा मेट्रो गेट की ओर ...जहां वो छोला- कुल्चा वाला अपना ठेला लगाता था ।
मैं बस से उतरा ... और चल पड़ा मेट्रो गेट की ओर ...जहां वो छोला- कुल्चा वाला अपना ठेला लगाता था ।
तभी मैंने अपनी रफ्तार मे कुछ कमी महसूस की , मानो कोई मुझे अपनी ओर खिच रहा हो ... पीछे पलटा तो देखा एक छोटी बच्ची मेरे जीन्स के साथ लगी पड़ी थी ।
उसने एक छोटी सी लाल रंग की फटी पुरानी फ़्राक पहन रखी थी ... जो उसके हालात अपने आप बयां कर रहे थे।
“साहेब ! कुछ पैसा दई दो ... दो दीना से कुछ नही खाया ... दई दो न ! ... आपके बच्चे खुश रहे ... पढे लिखे आगे बढ़े “ छोटी बच्ची ने मुझसे कहा ।
मैं ये सुन कर चौंक गया और सोचने लगा....
मैं ये सुन कर चौंक गया और सोचने लगा....
काहे के बच्चे ! ... मेरी तो शादी भी नही हुई ... फिर उनके पढ़ने लिखने और खुश रहने का तो सवाल ही नही उठता ... ये शब्द किसने.... इसकी इस छोटी सी जुबान पर डाले होंगे... जबकि मासूमियत आज भी इसके चेहरे पर अपना डेरा जमाये हुये है ... इसे पैसा दे देता हूँ ... नही ... ऐसा नही कर सकता !
कहीं ऐसा करके मैं इसके भीख मांगने की प्रवित्ति को बढ़ावा तो नही दे रहा ...
नही इसे एक भी पैसा नही दूंगा !
कहीं ऐसा करके मैं इसके भीख मांगने की प्रवित्ति को बढ़ावा तो नही दे रहा ...
नही इसे एक भी पैसा नही दूंगा !
इसे कुछ खिला देता हूँ ... बेचारी ने वैसे भी 2 दिन से कुछ नही खाया !
मैंने उससे पूछा “ तुम कुछ खाओगी ?”
उसने सहमति मे अपना बड़ा सा सर हिला दिया ।
मैंने उसे छोले कुल्चे वाले ठेले पर ले गया ।
तुम क्या खाओगी ?
“मैं आलू पूड़ी के साथ वो सोयाबीन वाली सब्जी , आचार , सलाद ... और एक ग्लास रायता लूँगी “ छोटी बच्ची ने कहा
मैंने सोचा ....
उसने सहमति मे अपना बड़ा सा सर हिला दिया ।
मैंने उसे छोले कुल्चे वाले ठेले पर ले गया ।
तुम क्या खाओगी ?
“मैं आलू पूड़ी के साथ वो सोयाबीन वाली सब्जी , आचार , सलाद ... और एक ग्लास रायता लूँगी “ छोटी बच्ची ने कहा
मैंने सोचा ....
भाई ! इसने तो पूरा मेनू कार्ड रत्ता मार लिया है
मैंने पूछा “ और कुछ मैडम जी ?”
उसने कहा “ बाद मे बटाऊब “
फिलहाल मैंने अपने लिए छोले कुल्चे बोले ... और उसके बनाने का इंतज़ार करने लगा।
मैंने पूछा “ और कुछ मैडम जी ?”
उसने कहा “ बाद मे बटाऊब “
फिलहाल मैंने अपने लिए छोले कुल्चे बोले ... और उसके बनाने का इंतज़ार करने लगा।
मैंने उससे पूछा “ तुम यहाँ कहाँ रहती हो ... और तुम्हारे मम्मी – पापा कहाँ है ?”
उसने कहा “ हम यही मेट्रो के नीयरे रही थ... आपन माई के साथ “
उसने कहा “ हम यही मेट्रो के नीयरे रही थ... आपन माई के साथ “
और तुम्हारे पापा कहाँ हैं ... क्या वो कुछ नही करते ?
“ पापा !... तो ..... नही हैं “
मतलब ?
“ पापा !... तो ..... नही हैं “
मतलब ?
“ मम्मी क़हत है ... पापा ऊपर गए हैं ... खूब सारा खाना और पैसा लावे खातिर ... फिर हमका कबहुँ कुछ मांगे के न पड़ी ... फिर हमौ सकूल जाब ...खूब पढब ... और तूहरे जैसे ... एक दिन अफसर बनब !”
पता नही कैसे वो ये बात वो छोटी सी बच्ची एक मुस्कान साथ कह गयी ।
पता नही क्यूँ .... ये बात मेरे आँसू स्वीकार नही कर पाये ... और इस बात का विरोध करने बाहर चले आए ।
मैंने उन्हे किसी तरह रोका ... और उसकी इस बात पे मैं बस इतना ही कह पाया ।
“ तुम कुछ और खाओगी ?”
तभी छोले कुल्चे वाले ने हमारा नाश्ता परोस दिया मेरे छोले कुल्चे और उसकी आलू पूड़ी ... रायते के साथ ।
वो तेज स्वर मे बोली “ अरे ! साहेब किता खिलाओगे ? ... का चाहते हो हमरा पेटवा फुट जाए “
अपना पेट देखो ... कदू बनने वाला है ... जादा पूछोगे तो मैं इसकी सब्जी बना के खा जाऊँगी “
उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी ।
वो तेज स्वर मे बोली “ अरे ! साहेब किता खिलाओगे ? ... का चाहते हो हमरा पेटवा फुट जाए “
अपना पेट देखो ... कदू बनने वाला है ... जादा पूछोगे तो मैं इसकी सब्जी बना के खा जाऊँगी “
उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी ।
मैंने व्यंगवश कहा “ तुम सब्जी बना भी लेती हो ?”
“ और का न ... जब माई बीमार पडत है ... तब हमए बनाई थ ... “
“ ऐसे का ताक रहे हो ... बहुत निक बनाई थ ... कभी आवो हमरे टेंट पे “
“ और का न ... जब माई बीमार पडत है ... तब हमए बनाई थ ... “
“ ऐसे का ताक रहे हो ... बहुत निक बनाई थ ... कभी आवो हमरे टेंट पे “
मैंने कहा “ टेंट पे ??”
“अरे ! हमरा घर ... तुम्ही लोग तो उसे टेंट बोलते हो न ! “
मैंने अपने छोले कुल्चे खतम किए ।
उसने भी आधा खाना खतम किया... फिर उसने उस छोले कुल्चे वाले से एक झिल्ली मांगी ... और आधा खाना उसमे रख लिया ।
मैं समझ गया ये खाना उसने किसके लिए रखा था ।
मैंने अपने छोले कुल्चे खतम किए ।
उसने भी आधा खाना खतम किया... फिर उसने उस छोले कुल्चे वाले से एक झिल्ली मांगी ... और आधा खाना उसमे रख लिया ।
मैं समझ गया ये खाना उसने किसके लिए रखा था ।
वो उस स्टूल से उठी ... और मेरे नजदीक आ कर बोली ...
“ थंकु साहेब थंकु “
मैंने उसका ‘थंकु’ स्वीकार किए बिना उससे पूछा “ तुमने थंकु कहना कहाँ से सीखा ?”
उसने शर्माते हुये कहा “ ये मत पूछो साहेब ... बस कहीं से सीख लिया “
फिर मैंने मुस्कुरा कर उसका ‘थंकु’ स्वीकार किया ।
“ थंकु साहेब थंकु “
मैंने उसका ‘थंकु’ स्वीकार किए बिना उससे पूछा “ तुमने थंकु कहना कहाँ से सीखा ?”
उसने शर्माते हुये कहा “ ये मत पूछो साहेब ... बस कहीं से सीख लिया “
फिर मैंने मुस्कुरा कर उसका ‘थंकु’ स्वीकार किया ।
समय देखा ... घड़ी 9:36 बता रही थी ... और 10 बजे मुझे दफ्तर पहुचना था ।
छोले कुल्चे वाले को पैसे दिये । फिर उस छोटी बच्ची ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा और चल पड़ी अपने घर की ओर ... पर मुझे अपनी मंज़िल की ओर जाना था ।
छोले कुल्चे वाले को पैसे दिये । फिर उस छोटी बच्ची ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा और चल पड़ी अपने घर की ओर ... पर मुझे अपनी मंज़िल की ओर जाना था ।
सो ... मैं चल पड़ा मेट्रो गेट की तरफ ....
मैं आज गौरवान्वित था ।
फिर मुझे लगा ...मैं कुछ भूल रहा हूँ ... अरे ! मैंने उस बच्ची का नाम तक नही पूछा “
मैं पीछे पलटा ... देखा वो छोटी बच्ची उछलते कूदते हुये दौड़ी जा रही थी
मैं चिलाया “ सुनो छोटकी ! तुम्हारा नाम क्या है ?”
मैं पीछे पलटा ... देखा वो छोटी बच्ची उछलते कूदते हुये दौड़ी जा रही थी
मैं चिलाया “ सुनो छोटकी ! तुम्हारा नाम क्या है ?”
उसने मुझसे भी तेज चिल्ला कर कहा “ लक्ष्मी ! “
मैंने सोचा “ नाम लक्ष्मी !... और लक्ष्मी जी कभी इसके दरवाजे नही आई... अगर आ पाती तो शायद .... “
जैसे ही मैं अपनी सोच से बाहर निकला ... तो देखा वो छोटी बच्ची कहीं गायब हो गयी थी इस शहर की भीड़ मे ।
समय देखा घड़ी अब 9:39 बता रही थी ... मुझे देर हो सकती थी ।
मैंने मेट्रो पकड़ी ... और अपने दफ्तर पहुचा ।
मैंने मेट्रो पकड़ी ... और अपने दफ्तर पहुचा ।
पर पूरे सफर के दौरान... वो बच्ची मेरे जेहन मे इधर से उधर खेलती रही .....!!
अगर कहानी अच्छी लगी हो तो ....अपनी राय अवश्य दे !
..ताकि मैं और बेहतर लिख सकूँ !
nicely expressed bhai.....
ReplyDeleteThanks Arzul bhai ..☺☺
ReplyDelete